भूत-प्रेत, चुड़ैल, जिन्न ब्रह्मपिचाश आदि का नाम सुनते ही मानव मन कौतुहल से भर जाता है। वैसे भी जो भी रहस्यमयी बातें, घटनाएँ होती हैं, वे मानव मन को अपने आगोश में जल्दी ले लेती हैं। खैर इस प्रकार की बातें, घटनाएँ पढ़ने वाले या फिल्म आदि के माध्यम से देखने वाले के लिए रोमांचकारी हो सकती हैं, कभी-कभी डर भी पैदा कर सकती हैं पर जरा सोचिए, उस पर क्या बीतती होगी, जिसके साथ कोई ऐसी घटना घटिट होती होगी। वैसे भी कभी-कभी इन बातों आदि का इतना प्रभाव पड़ जाता है कि व्यक्ति परेशानी में पड़ जाता है।
Pandit ji chale gaye bhooton ke ghar pe
मैं तो बार-बार अपनी यही बात दुहराता रहता हूँ कि अगर भगवान का अस्तित्व है तो भूत-प्रेतों का क्यों नही? जहाँ साकारात्मकता होती है, वहाँ नाकारात्मकता होती ही है। जहाँ सुख होता है, वहाँ दुख के भी अनुभव किए जाते हैं। इसका कारण यह है कि ऐसी बहुत सारी अवस्थाएँ हैं जो अपने एक से अधिक या यूँ कह लें कि अपनी विपरीत अवस्था में भी अपने अस्तित्व को बनाए रखती हैं। अब देखिए न, अच्छाई है तो बुराई भी है, प्रकाश है तो अंधकार भी। सुर हैं तो असुर भी। खैर यह तो एक पक्ष हुआ पर एक दूसरा पक्ष भी है। और वह यह कि जैसे इंसान आदि हैं, बहुत सारे सूक्ष्म जीव आदि हैं, वैसे ही भूत-प्रेत भी हैं और बिना जाने, बिना विचारे, अपने ज्ञान का रौब दिखाते हुए, अपनी वैज्ञानिकता सिद्ध करते हुए इन्हें झुठलाया जा सकता है पर उसे आप कैसे समझा सकते हैं, जो ऐसी रहस्यमयी घटनाएँ, हृदय को कँपा देनी वाली घटनाएँ अपनी आँखों से देखी हो। ऐसी परिस्थिति से खुद ही निपटा हो। तो फिर मैं वही बात कह रहा हूँ कि मुझे लगता है कि कहीं न कहीं कुछ ऐसे जीव, प्राणी आदि हैं जिनके किसी रूप को, स्वरूप को भूत-प्रेत आदि कहा जाता है और कुछ लोगों को इनका भान भी है।
मूल कहानी पर आने से पहले, अपने जवार की एक ऐसी सुनी हुई घटना बता रहा हूँ, जो यह भी सिद्ध करती है कि हमें अंधविश्वासी भी नहीं होना चाहिए और केवल सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं कर लेना चाहिए। भगवान ने विवेक दिया है तो हमें विपत्तिकाल में भी धैर्य से अपने विवेक का उपयोग करना चाहिए। कुछ पुरनिया भी कहा करते थे कि शंके भूत, मन्ने डाइन। यानी भूत-प्रेत आदि कुछ नहीं होते, बस ये मन के वहम हैं। अब वह घटना सुना देता हूँ, जो कहीं न कहीं इस बात को भी सत्य ठहरा रहा है। हमारे जवार में चिखुरी नाम के एक बहुत ही निडर और बहादुर व्यक्ति रहते थे। वे भूत-प्रेत में भी विश्वास नहीं करते थे। एक बार बातों ही बातों में उन्होंने अपने गाँव के एक व्यक्ति से शर्त लगा दी कि भूत-प्रेत कुछ भी नहीं होते, ये बस मन के वहम हैं। तुम बताओ, कहाँ भूत हैं, मैं जाकर निपट लेता हूँ। उनके गाँव के उस मनई ने कहा कि आज आधी रात को आप फलाँ गढ़ई (तालाब) के किनारे जो बरगद का पेड़ है, वहाँ एक खूँटा गाड़ कर आ जाइए तो मैं आपकी मरदुम्मी मान लूँगा। आधी रात को चिखुरी एक खूंटा और हथौड़ा लिए निकल पड़े उस गढ़ही (तालाब) की ओर। वे ज्यों घर से निकले, थोड़े सिहर गए और सोचने लगे कि कहीं सही में भूत-प्रेत तो नहीं होते। अँधियारी रात थी और वह भी एकदम सुनसान। बहती हुई हवा में भी अब उनको किसी भूत-प्रेत का आभास होने लगा था। पर हनुमानजी को याद करके वे तेजी से आगे बढ़े और दौड़ते-दौड़ते उस गढ़ही (तालाब) के किनारे पहुँच गए। पर कहीं न कहीं वे डरे हुए थे और अपने मन को भूत-प्रेत के चंगुल से निकाल नहीं पा रहे थे। गढ़ही के किनारे पहुँचकर, बरगद के पास वे हड़बड़ी में खूँटा गाड़ने लगे। उनका धीरज तेल लेने चला गया था और वे पसीने से पूरे तर हो गए थे। खूँटा गाड़ने के बाद वे फटाफट वहाँ से निकलने के लिए भागना चाहे पर यह क्या। वे चाह कर भी भाग नहीं पा रहे थे और उन्हें लग रहा था कि कोई उन्हें पकड़कर बैठा है और उन्हें खींच रहा है। चिखुरी पहलवान तो थे ही, हिम्मत करके खूब तेज पीछे की ओर हटे। थोड़ा अधिक बल लगने के बाद अब वे फ्री महसूस कर रहे थे। फिर क्या था, बिना पीछे देखे लंक लगाकर गाँव की ओर भागे। घर पहुँचने के बाद भी उनका बुरा हाल था। अब तो उनकी शरीर भी पूरी तरह से तपने लगी थी। फिर क्या था, घर वाले उनके आस-पास जमा हो गए। गँवई वैद्य को भी बुला लिया गया। कुछ काढ़ा-ओढ़ा पीने के बाद उन्हें थोड़ा आराम मिला। उन्होंने घर वालों को बताया कि उन्हें भूत ने पकड़ लिया था। गढ़ही के किनारे बरगद वाला भूत। खैर, रात बीती फिर गाँव के कुछ लोग गोल बनाकर उस गढ़ही किनारे के बरगद के पास पहुँचे। वहाँ एक खूँटा गड़ा हुआ था। पर गाँव के एक व्यक्ति ने खूँटे का सावधानी से निरीक्षण किया तो पाया कि खूँटे में धोती का कुछ भाग लगा हुआ है। फिर क्या, लोगों को यह बात समझते देर नहीं लगी कि हड़बड़ी में खूँटा ठोंकते समय चिखुरी की धोती का एक कोना भी मिट्टी में धँस गया था और जिसके चलते वे भाग नहीं पा रहे थे। यह सही पाया गया कि चिखुरी की धोती का एक कोना थोड़ा फटकर गायब था। तो कभी भी धीरज से काम लें, विवेक से काम लें और अंधविश्वास से बचें।
खैर, मैं आया था भूतही कहानी सुनाने और लगा भाषण देने। आप खुद ही समझदार हैं और समझ सकते हैं। आइए, अब बिना देर किए मैं आपको सुनी-सुनाई भूतही कहानी सुना ही देता हूँ।
बात बहुत पुरानी है। उस समय फोन-ओन नहीं हुआ करते थे। लोगों को कहीं बाहर जाना होता था तो ठीक से पता नोट करते थे, क्योंकि पता न होने पर उस व्यक्ति से मिल पाना मुश्किल होता था। एक बार की बात है कि हमारे जवार के एक पंडीजी यूँ ही तीर्थ भ्रमण पर निकल गए। उन्होंने बाहर रहने वाले अपने उन सभी परिचितों के पते नोट कर लिए थे, जिनके वहाँ वे जा सकते थे। सर्वप्रथम वे हरिद्वार गए। वहाँ 10-15 दिन रहने के बाद, पता नहीं उनके मन में क्या आया कि वे वहाँ से नासिक के लिए निकल पड़े। क्योंकि शायद उस समय नासिक में कुंभ लगने वाला था। खैर 10-15 दिन की यात्रा के बाद, कुछ पैदल, कुछ मंगनी की सवारी से होकर वे पंडीजी कैसे भी करके नासिक पहुँचे। नासिक पहुँचकर वे बहुत खुश थे क्योंकि नासिक में उनका एक परमभक्त चेला रहता था। कुछ लोगों से पता आदि पूछ-पूछ कर वे उस अपने चेले की खोली पर पहुँचे। जब वे खोली पर पहुँचे तो शाम हो रही थी और वह खोली शहर से दूर थोड़ी ग्रामीण इलाके में थी। दरअसल उनका चेला ग्रामीण इलाके में घर बनवाकर रहता था। वे सीधे उसके घर पर पहुँच गए, पर घर पर तो ताला लगा हुआ था। आस-पास कोई दिख भी नहीं रहा था कि पूछें। वैसे भी वे पूरी तरह से थक गए थे तो वहीं बैठकर आराम करने लगे और सोचे कि उनका चेला शायद बाहर गया होगा तो कुछ देर में आ जाएगा। पर उनके समझ में एक बात नहीं आ रही थी कि घर पर किसी को तो होना ही चाहिए। क्योंकि उनका चेला तो सपरिवार यहाँ रहता है। उसकी पत्नी है, दो बड़े-बड़े बेटे हैं, एक छोटी बिटिया है, पर अभी कोई नहीं? खैर उन्हें लगा कि किसी से मिलने गए होंगे, कुछ देर में आ जाएंगे।
दो-तीन घंटे के इंतजार के बाद, अचानक उस घर का दरवाजा खुल गया। दरवाजा खुलते ही उनके चेले का बड़ा लड़का बाहर निकला (जिससे वे 1 साल पहले गाँव में मिल चुके थे) और उन्हें प्रणाम करके अंदर आने को कहा। पंडीजी की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि दरवाजे पर तो ताला लगा था तो अगर यह अंदर था तो बाहर कैसे आया? क्योंकि बाहर तो उनके सिवाय कोई नहीं था। खैर वे थके-हारे थे इसलिए जेयादे विचार न करते हुए घर के अंदर चले गए। अरे यह क्या, घर के अंदर पहुँचकर देखते हैं तो बहुत सारे लोग हैं, हर उम्र के। पंडीजी को अजीब लगा, अभी वे अपने चेले के लड़के से कुछ पूछें, उससे पहले ही वह बोल पड़ा, “बाबा! बाबूजी (पिताजी) कुछ काम से मम्मी-ओम्मी के साथ गाँव गए हैं और मैं पिछले 10 दिन से अकेले ही हूँ घर पर। अकेले अच्छा नहीं लगता है तो रात को अपने इन दोस्तों को बुला लेता हूँ।” खैर, पंडीजी वहीं पास में अपना बोरिया-बिस्तर, छोला-झंटा रख दिए और फराकित (दिशा-मैदान) होने के लिए लोटा उठाकर घर से बाहर निकल पड़े। फराकित होने के बाद, वे बाहर ही कहीं हाथ-ओथ धोए, कुल्ला-उल्ला करके फिर स्नान किए। दरअसल पंडीजी रात को भी नहाते थे और पूजा-पाठ करते थे। इसके बाद वे अपने चेले के घर पर पहुँचे। घर के अंदर तो काफी धमा-चौकड़ी चल रही थी पर पंडीजी को इन सबसे क्या लेना था।
पंडीजी ने अपने चेले के लड़के से कहा कि मैं पूजा-उजा कर लेता हूँ फिर भोजन कर लूँगा। उनके चेले का लड़का थोड़ा सकपकाया और बोला, बाबा, बिना पूजा किए भी तो आप भोजन कर सकते हैं। भोजन तैयार है। पर पंडीजी, उसकी बातों पर ध्यान न देते हुए वहीं एक बोरा बिछाकर लगे पूजा करने। पूजा करने के बाद वे हरिद्वार से लाए गंगा जल को निकाले और सोचे अपने चेले के घर में छिड़क कर इसे पवित्र कर देता हूँ। अरे यह क्या, वे ज्योंही गंगाजल निकाले, उनके चेले का लड़का चिल्लाया, ऐसा मत करो। और इसके साथ ही वहाँ उपस्थित उसके सारे साथी विकराल रूप में आ गए, वे तो भूत-प्रेत थे। अजीब-अजीब। अरे पंडीजी तो अवाक रह गए। पंडीजी को अब तो कुछ गड़बड़ लगने लगी थी। उन्होंने तुरंत गंगा जल निकाला। गंगा जल निकालते ही भूत-प्रेत आशंकित मन से उनसे दूर होकर चिल्लाने लगे। खैर पंडीजी तो निडर आदमी थे और थे हनुमानजी के भक्त। उन्होंने तुरंत हनुमान-चालीसा पढ़ते हुए गंगा जल का छिड़काव करना शुरू किया। अरे यह क्या गंगा जल का छिड़काव करते ही वहाँ उपस्थित सारे भूत-प्रेत रफूचक्कर हो गए और उनके चेले का लड़का भी।
पंडीजी पूरी तरह परेशान क्योंकि अब तो रात भी काफी हो गई थी और आस-पास भी कोई दिख नहीं रहा था। खैर फिर भी वे वहाँ रुकना ठीक नहीं समझे और अपना झोला-झंटा उठाकर रात में ही निकल पड़े। उस घर से लगभग 1 किमी चलने के बाद वे एक मेन रोड जैसी जगह पर आए। वहाँ उनको एक छोटी टपरी दिखी। सोचे कि कुछ खा लेता हूँ और यहीं रात गुजार लेता हूँ। बातों ही बातों में टपरी वाले ने बताया कि वह भी उनके जिले के बगल वाले जिले का ही है। फिर क्या था, पंडीजी की अच्छी खातिरदारी हुई। फिर पंडीजी से रहा नहीं गया और अपनापन मिलते ही उन्होंने उनके साथ घटी घटना बता दी। इस घटना को सुनते ही वह टपरी वाला रो पड़ा। उसने बताया कि वह उनके चेले को जानता है। फिर उस टपरी वाले ने बताया कि उनके चेले का बड़ा लड़का कहीं बाहर गया था और सड़क दुर्घटना में मारा गया और उसी की काम-क्रिया करने के लिए वे सपरिवार गाँव गए हैं।
खैर भगवान उस पंडीजी के चेले के लड़के को सद्गति दें। फिर क्या था, पंडीजी घूमते-घामते घर आए। जिस-जिस ने यह बात सुनी, हतप्रभ रह गए। पंडीजी द्वारा बाद में फिर नासिक आकर अपने चेले के घर का शुद्धिकरण किया गया।
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