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“चलो न माँ और कितनी देर लगाओगी”
“बस बस आ गई”
“यह क्या माँ, ये सब क्या है, मैंने बोला था न वहां सब कुछ मिलेगा फिर भी तुम नहीं मानी”.. .
“अरे बेटा इसे ढोना थोड़ी है.. . गाड़ी जब जा ही रही है तो ये भी साथ ही चला जाएगा”
“तुम भी न माँ, तुमसे कुछ भी कहने का कोई फायदा नहीं”
माँ के हाथों से खाने का टिफिन अपने हाथ में लेते समय, माँ के हाथो का स्पर्श प्रमोद को कुछ ठीक नही लगता है । वह माँ से कहता है
“अरे माँ जाकर हाथ धो लो तुम्हारे हाथों में शायद कुछ लगा है”
माँ ने कहा
“नहीं-नही बेटा ये तो ऐसे ही हैं”
थोड़ी ही देर में वे शिमला की सैर को निकल पड़ते हैं । आज बहुत दिनों बाद प्रमोद को ऑफिस से तीन दिन की छुट्टी मिली है जिसका लुफ्त उठाने वो अपने दो छोटे भाई बहन और अपनी माँ के साथ शिमला जा रहा है ।
ये उनका पहला मौका है जब वे अपने शहर से इतनी दूर आए हैं । शिमला की वादियां वाकई काफी खूबसूरत हैं । उन्हे यहां बहुत अच्छा महसूस हो रहा है । हर तरफ बर्फ गिरी है । वैसे अपना शहर भी काफी खूबसूरत है मगर शिमला की तो बात ही कुछ निराली है । चारों तरफ सफेद चादर ओढ़े प्रकृति की सुंदर स्वरूप मन को मोहने के लिए काफी है ।
प्रमोद अपने दो भाई बहन और अपनी माँ के साथ वहां बहुत एंजॉय करता है । काफी देर घूमने फिरने के बाद वह होटल चले जाते हैं । जहां प्रमोद खाने का ऑर्डर करता है मगर माँ उसे मना करते हुए खाने का टिफिन निकालती है । तब प्रमोद कहता है
“माँ,मैंने तुमसे कहा था कि सब कुछ वहां मिलेगा, मगर फिर भी तुम जिद्द करके सारा सामान यहां ले आई, अब बताओ ये सब ढो के यहां तक लाने से क्या फायदा हुआ । जब यहां सब कुछ उपलब्ध है । वह भी ताजा”
तब माँ हस के कहती है
“अरे बेटा, माँ के हाथों का बस कुछ दिन और खा ले, मेरी उम्र दिन ब दिन ढलती जा रही है न जाने कब ऊपरवाला मुझे बुला ले । जब तेरी मैडम आएगी तब उसके साथ मन करे तो घर का बना खाना चाहे होटल का खाना”
“माँ हम यहां छुट्टियां इंजॉय करने आए हैं और तुम यहां ये सब बेकार की बात लेकर बैठ गई.. . क्या ये सब बातें करना यहां जरूरी है”
“अरे नहीं-नही बस यूं ही मुंह से निकल गया”
प्रमोद को मिले छुट्टियों के तीन दिन बहुत जल्द ही खत्म हो जाते है और अब समय है वापस लौटने का प्रमोद अपने भाई बहन को वापस चलने के लिए जगा रहा है ।
“चलो-चलो होटल खाली करने का समय हो गया घर नहीं चलना है क्या अभी तक घोड़े बेच कर सो रहे हो”
प्रमोद के जगाने पर सब की नींद टूट जाती हैं और होटल से घर जाने की तैयारी शुरू हो जाती है परंतु तभी पता चलता है कि रात को काफी बर्फबारी हुई है । जिसके कारण यहां से जाने के सारे रास्ते बंद हो गऐ हैं । अब तो बर्फ छटने के बाद ही यहां से जाना संभव हो सकेगा । इस खबर को सुनकर प्रमोद झल्ला जाता है क्योकि उसे तो बस तीन दिन की छुट्टी मिली थी । अब अगर उसने एक दिन भी ऑफिस पहुंचने में देर की तो उसके पैसे कटने शुरू हो जाएंगे । माँ उसे समझाती है
“बेटा यह सब हमारे हाथ में नहीं है । यह सब प्रकृति की माया है । इसमें नाराज होने से कोई फायदा नहीं थोड़ा इंतजार कर लो सब ठीक हो जाएगा”
“भैया एक बात कहूं”
चिड़चिड़ा हो चुका प्रमोद थोड़ा नाखुश अंदाज मे कहता है
“हां कहो”
“भैया वैसे तो तुम्हारा परेशान होना जायज है क्योंकि तुम्हारी छुट्टियां कब की खत्म हो गई हैं और हम यहीं फंसे हैं तुम्हारे ऑफिस का बहुत लेट हो रहा है । वहां जाकर शायद तुम्हें सीनियर से डांट भी खानी पड़े और तुम्हारे पैसे भी कटें, मगर क्या तुमने कभी इस समस्या के दूसरे पहलू को समझने की कोशिश की है”
प्रमोद “तुम कहना क्या चाहते हो सीधे-सीधे कहो”
प्रवीण “यही की प्रकृति ने आपके सामने जो परेशानियां खड़ी की है उसका निश्चित रूप से एक अच्छा मकसद भी है”
प्रमोद “थोड़े गुस्से में
बकवास ही करनी है तो तुम यहां से जा सकते हो”
प्रवीण “नहीं नहीं भैया ऐसी बात नहीं है”
प्रमोद “तो कैसी बात है”
प्रवीण “क्या तुमने कभी माँ के हाथों को देखा है उन्हें स्पर्श किया है । रात दिन हमारे लिए काम करते-करते उसके हाथ बिल्कुल कठोर और खुरदुरे हो गए थे । उसे कभी एक पल की फुर्सत नहीं मिली परंतु यहां होटल में लगभग दस दिनों से रहते हुए उसे एक प्लेट भी धोना नहीं पड़ा । सब कुछ होटल में ही मिल जाया करता है । उसे यहां खाना बनाने की, बर्तन मांजने की,जरूरत ही नही यहां सब कुछ होटल से ही अवेलेबल है । इन दस दिनों में माँ के हाथों को बहुत आराम मिला है । अब वे पहले की तरह सख्त और खुरदरे नही बल्कि मुलायम हो गए हैं । तुम्हारी ये एक्सट्रा छुट्टियां चाहे जितनी परेशानियां खड़ी करे परन्तु जाने अनजाने में तुमने माँ को जो सुख दिया है उसे माँ के हाथों को स्पर्श करके तुम खुद जान सकते हो”
अपने छोटे भाई से ये सारी बातें सुनते ही प्रमोद एक स्टेचू बन चुका था वाकई प्रवीण की बातों ने शायद उसे मन की गहराई तक छू लिया था ।
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