नैना को आज बहू -भोज के लिए खाना बनाना था। यह भी रस्म बहुत खास होती है, जिसमें बहू खाना बनाती है। सारे कुटुम्बी- जन, रिश्तेदार भोजन करते हैं और बहू को नेग देते हैं।
मुँह-अँधेरे,उठी
Jab tum saas banogi saas bahu ki emotional kahani
नैना ….नैना ….नैना …बस…. मम्मी, पापा , दीपक की… और तो और….. खुद उसके पति अनुपम की जबान पर यही नाम चढ़ा था।
वह सवेरे से अंगारों पर लोट रही थी। कभी उसके लिए भी ऐसा स्नेह किसी के मन में उमड़ा? बड़ी धूम मची है नैना के लिए।
“बहुत अच्छा खाना बनाती है हमारी नैना”मम्मी बुआजी को बता रही थी।माला को बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने मन ही मन कुछ फैसला किया और जा पहुंची नैना के पास।
” नैना एक कप चाय बना देना !”
नैना किसी काम से अपने कमरे में गई और माला ने एक मुट्ठी नमक और मिर्च सभी सब्जियों में झोंक दिया।इसके बाद प्रसन्नचित्त होकर अपने बेड पर बैठ कर ….आगे होने वाली घटना को सोच-सोच कर आनंदित होने लगी।
“अब आएगा मजा !जब मम्मी नैना की प्रशंसा के पुल बाँधेगी और सब खाना खाएंगे,फिर नैना की फजीहत होगी। पता नहीं, इसने सब पर क्या जादू कर रखा है ? ,मैं क्या समझूँ इसे ! दो कौड़ी की औकात नहीं इसकी ! इसकी औकात के तो मेरे मायके में नौकर रख लिए जाएँ !!जरा सा रंग रूप ही तो है छोकरी में !!और क्या है ? होगी !!मुझसे बढ़कर थोड़े ही है ? जरा सा मोटी ही तो हो गई हूँ मैं !”
अपने को शीशे में निरख -निरखकर ठंडी सांसे भरने लगी।
बाहर खाना- पीना शुरू हो चुका था ।नैना माला को चाय दे गई थी और खाने के लिए आग्रह कर गई थी।चहल-पहल शोरगुल मचा था। खाने-पीने की सभी प्रशंसा करते नहीं अघा रहे थे।
खाना हो चुका था ।अब माहौल शांत हो गया था। माला बेचैन होकर पहलू बदल रही थी।
“क्या बात है ? कुछ हलचल नहीं मालूम हुई !”
सास, मनोरमा देवी हाथ में भोजन की थाली लेकर कमरे में आई और माला के सामने रखते हुए बोली:-
” लो!,तुम भी खाओ! तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है।
इसलिए मैं खाना ले आई हूँ !”माला को हक्की बक्की देख कर बोली :-
“क्या बात है ? आश्चर्य हो रहा है कि कोई हंगामा क्यों नहीं हुआ?”
माला ने देखा थाली में नैना की बनाई हुई कोई भी सब्जी नहीं थी।
जब माला सब्जी में नमक, मिर्च झोंक रही थी तो मनोरमा ने उसे देख लिया था पर मेहमानों के सामने कुछ कहना …..अपनी ही बदनामी करना था। उन्होंने दीपक और नैना को बुलाकर कहा ,:
“मैं भूल से सब्जियों में दोबारा नमक डाल गई ! इतनी जल्दी क्या हो सकता है ? तीनों ने मंत्रणा करके होटल से सब्जी मंगवाई थी।आयोजन सफलतापूर्वक हो गया था।
लेकिन मनोरमा सोच में डूबी थी।जब वह ब्याह कर इस घर में आई थी तो उन्हें सबकी जी -हुजूरी करनी पड़ी थी मगर उन्होंने कभी ,,उफ,,तक नहीं की थी । 3 देवर ,2 ननदें,सास-ससुर के इतने बड़े परिवार में ,सब की शादियां निपटाई ,नाज- नखरे झेले। ननदें अपने घर की हो गईं, देवर अपनी जिम्मेदारी से मुकरते हुए अलग हो गए थे। सास-ससुर को किसी ने भी अपने पास नहीं रखा।सास वैसे तो कमजोर थी, पर जवान बहुत तेज थी। बात का बतंगड़ बनाने में महारत हासिल था उन्हें। इस वजह से मनोरमा को कभी चैन नहीं मिला। खैर,वह भी झेला।
मनोरमा के दो बेटे अनुपम ,दीपक थे।उन को पढ़ाने में मनोरमा बहुत ध्यान देती थी ।पढ़- लिखकर अनुपम अच्छी पोस्ट पर नौकरी कर रहा था। शादी अच्छे घर से हो गई थी। बहू, माला मायके की संपन्नता का घमंड लिए जब ससुराल में आई तो मनोरमा बहुत निराश हो गई। एक तो नकचढ़ी ,दूसरे घर के किसी काम में हाथ नहीं लगाती थी ।अब भी मनोरमा को सब करना होता था। माला के भी दो बच्चे, एक बेटा, एक बेटी हो चुके थे।मनोरमा के सास-ससुर का देहांत हो चुका था
मनोरमा के मायके में उसके भाई -बंधुओं में दूर का चचेरा भाई था ,उसकी बीमारी में मृत्यु हो गई थी।उसके 3 बच्चों में एक लड़के और एक लड़की की शादी हो गई थी ,तीसरी नैना ही बची थी।मनोरमा नैना को अपने यहां जब कोई काम होता था तो उसे बुला लेती थी। नैना सारा काम ,अपने जिम्मे ले लेती और सफलतापूर्वक निभा भी देती थी।
आते- जाते नैना को दीपक भी पसंद करने लगा था। सुंदर तो वह थी ही ! बस मनोरमा ने उसे अपनी बहू बना लिया।
बिना दहेज की शादी, माला के लिए उपहासजनक थी।
आज उसी बहू नैना का ,,बहूभोज,था।
माला की इस हरकत से मनोरमा को बहुत हताशा हुई थी। आज अगर उनकी अचानक नजर न पड़ जाती तो फजीहत होनी निश्चित ही थी। उन्होंने माला से बड़े ठंडे स्वर में कहा:-
” माना ! मैंने बिना दहेज के ही शादी कर ली। फिर भी वह सब की प्रिय है! जानती हो क्यों ?
वह सब के लिए, हर काम करने के लिए, हरदम तैयार रहती है । तुमने कभी किसी के लिए कुछ किया ?
कभी किसी की परेशानी दुख महसूस किया?
अगर तुम्हारे मायके वाले अमीर हैं तो इससे क्या?
पहले तुम शिकायत करती हो तुम्हें बहू के रूप में सुख नहीं मिला।जबकि काम तुम ऐसे करती हो!! यही काम तुम बाद में बहू के साथ करोगी,,, जब तुम सास बनोगी,, जब यही काम तुम्हारी बेटी के साथ होगा तब तुम तड़पोगी।
आज तुमने नैना के साथ जो किया कल को वही तुम्हारी बेटी के साथ होगा।आखिर औरतें ही औरतों को क्यों सताती है? क्यों नहीं हँसते-खिलखिलाते
तोड़ दो इस ईर्ष्या के बंधन को! खुली हवा को आने दो !हँस कर जियो और जीने दो।
माला को अपना वास्तविक रुप इससे पहले ऐसा नहीं दिखा था । उसकी आँखों से पश्चाताप के आँसू बह निकले।
उसकी सास मनोरमा ने उसके घिनौने काम को किसी के सामने उजागर नहीं किया था। वह अपने को उनके सामने बहुत ओछी अनुभव कर रही थी।
तभी नैना वहाँ आ गई। झिलमिलाती,नेवी ब्लू साड़ी में दमकती, आज पहली बार वह माला को बेहद प्यारी लगी।
“मम्मी जी ! क्यों ना ऐसा करें ! जो सब्जी खराब हो गई वह मैं सँभाल लूँगी! फिर हमारी सड़क के पार जो झुग्गी है, वहां दावत क्यों न कर दें ?”
मनोरमा ने बड़े स्नेह से उसकी तरफ देखा :-
“मेरे मन में यह बात क्यों नहीं आई ? नैना ने नई सब्जी तैयार कर ली थी। उन सब्जियों में आटे की छोटी-छोटी पूरिया पका ली थीं,थोड़ा टमाटर,थोड़ा नींबू ,थोड़ा घी डालकर वे ढेर सारी सब्जियां ,टेस्टी सब्जियां बन चुकी थी।नैना, मनोरमा और माला ने पूड़ियां बनाईं ,और और पहली बार झुग्गीवाले लोग भी दावत उड़ा रहे थे।नेग में नैना ,सदा सुहागन रहो ,दूधो नहाओ पूतो फलो ,के आशीर्वाद ले कर फूली नहीं समा रही थी।
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