पापा.. पापा सुधा दीदी के होने वाले ससुर और होनेवाले जीजाजी आ रहे है जैसे ही सुधा की छोटी बहन ने अपने पापा को आवाज लगाते हुये कहा उनके सहित पूरे परिवार के चेहरे पर तनाव और बढ गया असल मे शर्माजी ने अपनी बेटी सुधा का रिश्ता सुरेन्द्र जी के बेटे मोहन से तय किया था
सगाई हो चुकी थी सबकुछ ठीक था की कल शाम सुरेन्द्र जी का फोन आया कह रहे थे दहेज को लेकर आपसे कुछ बातें करनी है ..शर्माजी ने यूं तो सुधा के लिए कपडे जेवर तैयार किए थे मगर मोहन सरकारी नौकरी करता था सो एक बाइक सोने की चैन ओर कुछ नगद के इंतजाम को रिश्तेदार ओर जाननेवालो से कर्ज उठा लिया था लेकिन अब कोई ओर डिमांड हुई तो कैसे …इसी उलझन मे पूरा परिवार ठीक से सो भी नही पाया था खैर होनेवाले समधी ओर दामाद का स्वागत किया ..और दिल की बढती धडकन को काबू कर सुरेन्द्र जी और मोहन की दहेज डिमांड को सुनने को दिल मजबूत करने लगे जैसे ही मोहन के पिताजी सुरेंद्र जी को पानी दिया तो उन्होंने धीरे से अपनी कुर्सी शर्माजी और खिसकाई ओर धीरे से बोले शर्माजी मुझे दहेज के बारे बात करनी है..शर्मा जी ने हाथ जोड़ते हुये कहा- बताईए समधी जी..सुरेन्द्रजी