Darawani gufa main kyu ghusa hindi horror story
कहानी को मुंबई के रहने वाले दीपक ने लिख कर भेजी है। इस कहानी में उनके साथ जो खौफनाक वारदात हुई वह बहुत ही असमंजस में डालने वाली थी।
मैंने मुंबई में ही रहकर अपनी सारी पढ़ाई पूरी की, ग्रेजुएशन समाप्त होने के 1 साल बाद मुझे घूमने के लिए कहीं जाना था क्योंकि मुंबई की भीड़ भाड़ तो मैंने काफी झेल ली थी। इस सघन क्षेत्र से निकल कर मुझे कहीं खुले वातावरण में जाना था। जो प्राकृतिक छटाओं से भरा पूरा हो, और मेरी जेहन में झारखंड की राजधानी रांची का ख्याल आया। रांची से 40 किलोमीटर दूर रांची टाटा मार्ग पर तैमारा गांव के पास एक बहुत ही बड़ा झरना है जिसका नाम है (दशम फॉल) यह काफी बड़ा झरना है।
इस झरने का बेग बहुत तेज है। मैं भी इस झरने को बहुत ही साधारण झरना मान वहां जाने के लिए तैयार हो गया था। लेकिन मुझे मालूम नहीं था कि यह झरना अन्य सभी झरनों में से अलग एवं विचित्र है जो अपने आप में कई रहस्य को समेटे हुए हैं।
मैं अकेला ही झारखंड जाने के लिए तैयार था और अगले ही दिन जब मैं वहां पहुंचा तो वहां के वातावरण ने तो मेरा मन ही मोह लिया। चारों और बड़े–बड़े पेड़ एवं घने जंगल जिसकी हरियाली देख मन को सुकून देने वाली थी। मैं बेहद खुश था यहां तक पहुंच कर…….
मैं उस गांव तक पहुंच गया जहां से दशम फॉल शुरू होता था। मैंने वहां गांव में आदिवासियों की कई झुंड को देखा, और वहां मौजूद स्थानीय लोगों की जानकारी लेकर मैं दशम फॉल तक पहुंच गया। इतने बड़े झरने को देख मेरी आंखें चकाचौंध हो गई, पहाड़ की ऊंची चोटी से गिर रहे पानी के मोटे धार जब तल पर मौजूद चट्टानों से टकरा रही थी। तो उससे एक अलग ही ध्वनि निकल रही थी जो सीधे दिल पर दस्तक दे रही थी।
उस बड़े झरने के बगल में मुझे एक बहुत बड़ा सुरंग दिख रहा था। मैंने देखा उस सुरंग की आधी मुख एक छोटे से चट्टान से ढकी हुई है। झरने को पार कर उस सुरंग के बगल जाना मेरे लिए खतरे से खाली नहीं था। क्योंकि ऊपर से तेजी से आ रहे झरने अगर मेरे शरीर को स्पर्श करती तो मैं सीधे उस सुरंग में जा गिरता लेकिन फिर भी मुझे उस सुरंग को देखने का जिद था। जैसे ही मैं आगे की ओर जाने के लिए पैर बढ़ाया तो पीछे से किसी ने आवाज लगाई अरे रुको, मैं तुरंत ही पीछे मुड़कर देखा, वहां एक व्यक्ति खड़ा था उसने मुझे बताया कि यह झरना बहुत ही खतरनाक है अगर यहां थोड़ी सी भी असावधानी बरती जाए तो मौत तय है।
उसने यह भी बताया कि इस झरने के चक्कर में कई आदमी उस सुरंग के अंदर चले गए हैं। जिनकी आज तक कोई भी खोज खबर नहीं है। मुझे इस आदमी की सारी बातें फिजूल लग रही थी। मुझे लगा यह कोई होगा या सिर्फ मुझे डराने के लिए ऐसा कह रहा है। उस समय तो मैंने उसकी बातें मान ली लेकिन जैसे ही वह वहां से गया मैं तुरंत ही उस सुरंग की तरफ बढ़ने लगा।
झरने के नीचे बड़े–बड़े चट्टान मौजूद थे जिनपे काफी फिसलन थी। लेकिन मैं चट्टानों से बचता बचाता उस सुरंग के समीप पहुंच गया। बाहर से देखने पर सुरंग के भीतर काफी अंधेरा दिखाई दे रहा था।
मेरे शरीर के ऊपर झरने के थोड़े–थोड़े धार गिर रहे थे। पर उनमें उतनी ताकत नहीं थी कि मुझे गिरा सकते। मैं अपने हाथों से उस सुरंग के आगे रखे छोटे से चट्टान को हटा दिया, जैसे ही मैंने उस चट्टान को हटाया तो पता नही कहां से झरने की धार इतनी तेज हो गई की मैं अपने आप को संभाल नहीं पाया और उस सुरंग में जा गिरा।
मैं बेहोश हो गया था और जब मेरी होश टूटी तो मैंने अपने आप को घास के एक बड़े ढेर पर पाया, मैं चौक कर उठ गया और इधर उधर देखने लगा मैं काफी घबरा गया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं कहां हूं। यहां चारों ओर चट्टाने थी। और अंधेरा भी छाया हुआ था मैंने ऊपर देखा तो सुरंग की मुख दिखी जिससे रोशनी आ रही थी एवं झरने की आवाज भी…..
यह आवाज और यह रोशनी मुझे थोड़ा सुकून देने वाली थी। लेकिन यहां से ऊपर तक तकरीबन साठ से सत्तर फिट की दूरी थी मुझे समझ नहीं आ रहा था की ऊपर कैसे पहुंचा जाए, मैं ऊपर चढ़ने के लिए काफी मशक्कत कर रहा था लेकिन मैं पहुंच नहीं पा रहा था। क्योंकि झरने के पानी से चट्टानों के बीच काफी फिसलन थी। और थोड़ी थोड़ी पानी भी अंदर गुफाओं में आ रही थी।
धीरे धीरे अब शाम होने वाली थी मुझे लग रहा था अगर इस गुफा से जल्दी ही ना निकला गया तो यहां मेरी मौत निश्चित है।
मैं अपने बाई तरफ देखा तो मुझे एक छोटी सी गली दिख रही थी जो गुफा के और भीतर ले जा रही थी। मैं असमंजस में था की आखिर यह सुरंग किस तरफ जाती है। क्या यह मुझे बाहर तक ले जाएगी यह सोच मैं उस छोटी सुरंग के भीतर प्रवेश कर गया।
अंदर ऐसा लग रहा था मानो यहां किसी ने इसे बनाया हो जैसे जैसे मैं अंदर की ओर प्रवेश कर रहा था गुफाएं और भी डरावनी होती जा रही थी। कम से कम 15 मिनट तक चलते चलते मेरे सामने एक बड़ा सा गुंबद दिखा और एक खुली जगह थी।
सामने गुंबद के नीचे जो खाली स्थान था उसमें जो मैंने देखा मेरे तो होश उड़ गए, मैंने अपनी आंखों से देखा कि लोहे के छोटे–छोटे चकमुद्दों में लोहे की मोटी जंजीरों से ढेर सारे नर कंकाल बंधे हुए थे देखने में ऐसा लग रहा था मानो उन्हें कई वर्षों से वहां कैद कर रखा गया, कुछ नर कंकाल ओं की अस्थियां पुरानी होकर ध्वस्त हो गई थी।
मैं सोच रहा था हो ना हो कहीं मेरी हालत भी इन लोगों जैसी ना हो जाए, इसलिए मैं तुरंत ही उल्टे पांव गुफा के बाहर की ओर भागा और मैं वहीं आकर रुका जहां मैं गिरा था।
मैं गुफा के ऊपर की ओर देख रहा था अचानक मुझे ऐसा लगा गुफा के मुख के सामने से कोई गुजरा हो। मैं जोर जोर से बचाओ बचाओ की दहाड़ लगा रहा था।
बाहर झरने की आवाज इतनी तेज थी कि शायद मेरी आवाज बाहर की ओर पहुंच नही पा रही थी। मैं इसी इंतजार में था कि अगर झरने की आवाज़ कम हो तो मेरी आवाज शायद कोई सुन पाय, तकरीबन 1 घंटे तक जोर जोर से चिल्लाने पर किसी ने मेरी आवाज सुनी और वह गुफा तक पहुंचा , उसे देख मुझे जीने की एक आस लौट गई , शायद वह कोई आदिवासी ही था और उसने तुरंत हीं एक रस्सी मेरी ओर बढ़ाई और मुझे ऊपर की ओर खींच लिया, मैं उस आदिवासी के भाषा को समझ नहीं पा रहा था लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था मानो वह मुझे फटकार लगा रहा हो।
मैं तुरंत ही वहां से भागा ……
उसी दिन मैंने मुंबई की गाड़ी फिर से पकड़ मुंबई लौट गया,
बाद में इसकी चर्चा मैंने घरवालों से की, उस घटना को जब मैं याद करता हूं तो मेरी रूह कांप उठती है। मैं यही सोचता हूं आखिर वह कौन था जो गुफा के सामने से गुजर गया था। और उस सुरंग के भीतर लास किसकी थी।
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