पुराने किलो में हमे हमेशा पुरानी रूहानी ताकतों का अनुभव होता है जो की किसी मौत को बुलावा दे रहे हो और हम उस जगह पर बिना डरे नहीं रुक पाते और ऐसी रहस्यमयी जगहों के आगे विज्ञान भी अपने घुटने टेक देता है | दुनिया में ऐसे कई किले है जहा की कहानिया आज भी उनके काले अतीत को बयान करती है | बहुत कम इंसान ऐसे जगहों से रूबरू हो पाते है और कुछ लोग तो मानते ही नहीं है लेकिन फिर भी हमारे दिमाग को ऐसी रहस्मयी जगहों पर पहुचने का जज्बा रहता है हम ऐसी रहस्यमयी जगहों के बारे में गहराई से जाने बिना नहीं रह सकते है |
Bhangarh ka wo Bhutiya Kila jahan raat ko jana mana hai
हमने देश विदेश के कई प्रेतबाधित किलो के बारे में सुना होगा लेकिन आज आपको हम अतीत की कहानियों में बिखरे एक किले से आपको उसकी अतीत से रूबरू करवाएंगे | भारत में एक ऐसा किला है जिसके बारे में कहा जाता कि सूरज डूबते ही इस किले पर आत्माओ का कब्ज़ा हो जाता है और कोई भी इन्सान इस किले में रात नहीं बिता सकता है और जिसने भी ऐसी कोशिश की उसका अभी तक पता नहीं चल पाया है | इस किले का नाम है भानगढ़ का किला जो कि जयपुर से कुछ दूरी पर अलवर जिले में स्थित है | आइये आज हम आपको इस रहस्यमयी किले की सच्ची घटना बताते है |
इस किले Bhangarh Fort को १७ वी शताब्दी में राजा माधो सिंह ने बनवाया था | माधो सिंह , अकबर के सेनापति मानसिंह के छोटे भाई थे और उसकी सेना में जनरल के पद पर थे | आज से ३०० साल पहले इस छोटे से नगर की जनसँख्या लगभग १०००० थी | यह किला उस समय का पहाड़ो पर बना बहुत आलीशान किला माना जाता था जिसको बहुत बड़े पैमाने पर लोगो के रहने के लिए बनवया गया था | उस समय इस किले में कई मंदिरों और द्वारो का निर्माण करवाया गया था | इस किले को चारो और से एक मजबूत दीवार ने घेर रखा था ताकि बाहरी शत्रु सीधे किले में प्रवेश ना कर सके | इस किले में प्रयोग हुए पत्थर इतने मजबूत थे की आज भी आप इन पत्थरों का प्रयोग भवन निर्माण में कर सकते है|
यह किला Bhangarh Fort आपको देखने में जितना सुंदर लग रहा होगा उसके पीछे की कहानी उतनी ही भयावह है | इस किले के बारे में एक कहानी प्रचलित है जिसके अनुसार इस किले में रत्नावती नाम की खुबसुरत राजकुमारी रहती थी | उनकी खूबसूरती से प्रभावित होकर आस पास के कई राज्यों के राजकुमारों के उनके पास विवाह प्रस्ताव आते थे | अक्सर वो अपनी प्रिय सहेलियों के साथ बाजार भ्रमण को निकला करती थी | एक दिन जब वो बाजार भ्रमण कर रही थी तो वो एक इत्र की दूकान पर रुककर इत्रो की खुशबु सूंघ रही थे | उसी समय एक सिंधिया नाम का जादूगर उसको दूर से निहार रहा था जो कि उस राज्य का सबसे बड़ा तांत्रिक माना जाता था |
उस दिन से वो राजकुमारी की सुन्दरता से इतना प्रभावित हुआ कि वो उस राजकुमारी को पाने के लिए कुछ भी कर सकता था | उसने उसको पाने के लिए बिना तंत्र के कई जतन किये लेकिन वो सफल नहीं हुआ | तब उसने तन्त्र विद्या का प्रयोग किया और जिस इत्र की दूकान पर राजकुमारी इत्र लेने आती थी उस इत्र में वशीकरण का काला जादू मिला दिया | राजकुँमारी के गुप्तचरों को इस बात का पता लग गया और वो उस इतर की दूकान पर गयी और उस इत्र को नीचे जमीन पर जोर से पटक कर नष्ट क्र दिया
पत्थर पर गिरते ही वो इत्र की बोतल चकनाचूर हो गयी और इत्र बिखर गया | उस इत्र में सिंधिया ने अपने पुरे जीवन की तंत्र विद्या को लगा दिया था जिसमे उसकी जान भी उसमे शामिल थी | इसी कारण इत्र्र के गिरते ही उस तांत्रिक में दम तोड़ दिया लेकिन मरने से फ्ल्ले उस जादूगर सिंधिया ने इस किले और किले Bhangarh Fort में रहने वालो को श्राप दिया कि इस किले में आज के बाद कोई जीवित नही बच पायेगा और ना कोई यहा पर रह पायेगा |
तांत्रिक के इसी श्राप के कारण उसकी मौत के दुसरे दिन ही भानगढ़ Bhangarh Fort और अजबगढ़ के बीच बहुत भयानक युद्ध हुआ और जिसके कारण भानगढ़ की रानी रत्नावती समेत सारे नागरिक मौत के घाट उतार दिए गए | यहाँ मरने वाले सभी लोगो की आत्माए आज भी इस किले में भटकती रहती है | इस घटनाके बाद कई राजा यहाँ रहने को आये लेकिन यहा रुक नहीं सके |
इस किले Bhangarh Fort में ASI की टीम की तरफ से एक बोर्ड लगा है जिसमे रात्री में यहा प्रवेश वर्जित बताया गया है | इस किले में मकानों की छत भी उस जादूघर के श्राप के कारण उखड़ गयी है और कई इमारते तो पुरी तरह ढेर हो गयी है | इस किले में सरकार ने भी कई इस किले की कहानियों को झूठा साबित करने की कोशिश की लेकिन इस किले में गूंजती चीखो ने उनको भी यहा टिकने नहीं दिया | शाम के वक्त तेज हवाओं के बाद सन्नाटा मंडरा जाता है जो सन्नाटे के बाद की चीखो का रूप है
इस किले Bhangarh Fort के अंदर ASI का कोई भी ऑफिस नहीं है और कई तांत्रिक यहा रात को साधना करने आते और किसी को भी पता नहीं चल पाता है | इन भुतहा घटनाओं के चलते यहा कोई निर्माण कार्य भी संभव नहीं हो पाया है | इस किले में मंदिरों में मुर्तिया तो है लेकिन वहा पर पूजा नहीं होती है क्योंकि पूजा का समय शाम 7 बजे होता है और शाम ढलने पर किसी का भी प्रवेश वर्जित है | शायद इन्ही सब कारणों की वजह से अलवर जिला भानगढ़ के पर्यटकों की संख्या में इजाफा हुआ है